Sunday, February 15, 2015

भारत 6, पाकिस्तान 0

        भारत ने फिर 'बड़ी जीत' दर्ज की है। पाकिस्तान के लिये यह सबसे बड़ी हार है। इमरान खान ने 1992 में पाकिस्तान को विश्व कप दिलाया था लेकिन यही वह साल था जब ​क्रिकेट महाकुंभ में भारत ने पहली बार अपने इस चिर प्रतिद्वंद्वी को हराया था और तब यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। छह मैच और सभी में जीत, महज संयोग नहीं है। महेंद्र सिंह धौनी भले ही कह रहे थे कि पिछले रिकार्ड मायने नहीं रखते लेकिन पाकिस्तान के मामले में वह भी पिछले आंकड़ों का महत्व समझते होंगे। पाकिस्तान पर बहुत बड़ा बोझ है इन आंकड़ों का। अगर ऐसा नहीं होता तो उसके खिलाड़ी हर बार विश्व कप मैच से पहले इन आंकड़ों और इन्हें पलट देने की बात नहीं करते। असल में उसके खिलाड़ी मैच से पहले ही इन आंकड़ों के बोझ तले दबे होते हैं और भारत को इसका पूरा लाभ मिलता है। 
            पाकिस्तान और वहां ​के क्रिकेट प्रेमियों की हालत ऐसी हो गयी है कि यदि मिसबाह उल हक की टीम इस बार जीत जाती तो वह मिसबाह को इमरान से बड़ा हीरो बना देती। भारत की स्थिति भी इससे हटकर नहीं है। आप तमाम सोसल साइट्स पर पिछले दिनों की पोस्ट देख लीजिए। लबोलुबाब एक ही था। भारत विश्व कप का खिताब नहीं जीत पाये गम नहीं लेकिन वह पाकिस्तान से नहीं हारना चाहिए। भारत जीता तो हर तरफ पटाखों की गूंज थी। इस विश्व कप के दौरान शायद ये पटाखे अब भारत के फिर से विश्व कप जीतने पर ही सुनने को मिलें। भारत और पाकिस्तान की इस आपसी जंग को आईसीसी से लेकर बीसीसीआई तक सभी भुनाते हैं। क्रिकेट प्रशासन से जुड़ा हर शख्स चाहता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में खटास बनी रहे क्योंकि ​इस तरह के मैचों में रिश्तों की यही खटास उन्हें मोटा माल दिला देती है। आईसीसी को जितना फायदा भारत और पाकिस्तान के मैच से होती है उतनी किसी अन्य मैच से नहीं। मैच के प्रसारक भी मालामाल हो जाते हैं, इसलिए वह मैच से पहले ऐसे विज्ञापन तैयार करता है जिनमें खटास साफ नजर आती है। ऐसे में यह कहना कि क्रिकेट भारत और पाकिस्तान के दिलों को जोड़ता है या करीब लाता है, बेमानी हो जाता है। असलियत तो यह है कि जब भारत और पाकिस्तान क्रिकेट मैदान पर आमने सामने होते हैं तब सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच कटुता अधिक बढ़ जाती है। इसलिए रवि शास्त्री ने एक बार कहा था कि भारत और पाकिस्तान के बीच के मैच किसी जंग से कम नहीं।

           र भारत ने फिर से जंग जीत ​ली है। पहली बार उसका पाकिस्तान की ऐसी टीम से मुकाबला था जो असल में मुकाबले में दिख ही नहीं रही थी। उनके हाव भाव से किसी भी समय ऐसा नहीं लगा कि यह वास्तव में पाकिस्तान की वही टीम है जिसके खिलाड़ियों को भारतीय दुश्मन नजर आते थे। भारतीयों के हाव भाव भी बदले हुए थे। अंतर इतना था कि भारतीय खिलाड़ियों में जीत की ललक थी। यह अच्छा संकेत है। यदि खिलाड़ी खेल भावना से खेलते हैं और इसे जंग के बजाय एक आम क्रिकेट मैच की तरह लेकर चलते हैं तो संभवत: प्रशंसक भी इस बात को समझेंगे।
    मैच की बात करें तो यह सभी जानते हैं कि पाकिस्तान के बल्लेबाज नहीं चले लेकिन मैच में सबसे बड़ा अंतर क्षेत्ररक्षकों ने पैदा किया। पाकिस्तानी क्षेत्ररक्षकों ने शुरू से कैच टपकाये जबकि भारत की तरफ से कुछ मुश्किल कैच लपके गये। उन्होंने फिर से 'लपको कैच, जीतो मैच' को सही साबित किया। भारतीय गेंदबाजों को इस प्रदर्शन से फूल कर कुप्पा होने की जरूरत भी नहीं क्योंकि उनकी असली परीक्षा नहीं हुई। उनकी अग्निपरीक्षा तो अगले रविवार को होगी जबकि दक्षिण अफ्रीका के दमदार बल्लेबाज उनके सामने होंगे। जयहिन्द।। 

                                                                                         धर्मेन्द्र पंत 

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