Monday, February 23, 2015

फिर बदलेगा विश्व कप का प्रारूप

                                                                                            धर्मेन्द्र पंत 
    बात विश्व कप 2007 की है। बांग्लादेश ने पहले दौर में भारत को हराकर उलटफेर कर दिया और एक अन्य ग्रुप में आयरलैंड ने पाकिस्तान को पीट दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि उपमहाद्वीप की ये दोनों टीमें पहले दौर से आगे नहीं बढ़ पायी। यह भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट प्रेमियों के लिये ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद यानि आईसीसी के लिये भी झटका था। आईसीसी का यह नंबर एक टूर्नामेंट है और इससे उसे मोटी कमाई होती है लेकिन विशेषकर भारतीय टीम के जल्दी स्वदेश लौटने के कारण विश्व कप की लोकप्रियता का ग्राफ अचानक ही नीचे गिर गया। आईसीसी की उम्मीद के मुताबिक कमाई भी नहीं हुई और तब क्रिकेट की इस सर्वोच्च संस्था को भारत का महत्व पता चल गया। अब ऐसा प्रारूप तैयार किया जाने लगा जिससे भारत कम से कम नाकआउट तक पहुंच पाये। उसके बाद मैच कितने ही बचते हैं और फिर सेमीफाइनल, फाइनल में तो सभी की दिलचस्पी बनी ही रहती है।
        इसलिए 2011 से टीमों को चार नहीं दो ग्रुप में बांट दिया गया। प्रत्येक ग्रुप में सात टीमें रखी गयी और चार टीमों के क्वार्टर फाइनल में पहुंचने का प्रावधान रखा गया। आईसीसी जो चाहता था वही हुआ। चोटी की आठ टीमें क्वार्टर फाइनल में पहुंची और भारत तो अपनी सरजमीं पर चैंपियन भी बन गया। इस बार आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में चल रहे विश्व कप में भी प्रारूप नहीं बदला गया। बांग्लादेश और जिम्बाब्वे जैसे टेस्ट खेलने वाले देशों सहित दोनों ग्रुप में तीन . तीन ऐसी टीमों को शामिल किया गया है जिन्हें कमजोर माना जा रहा है।
         आईसीसी फिर से चाहती  है कि आस्ट्रेलिया, भारत, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, इंग्लैंड, श्रीलंका और वेस्टइंडीज क्वार्टर फाइनल में पहुंचे। यदि ये थोड़ा सा अच्छा प्रदर्शन करें तो इनके लिये यह काम मुश्किल भी नहीं होगा। मसलन इंग्लैंड को ही लीजिए। वह अपने ग्रुप की दो मजबूत टीमों आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से बुरी तरह हार गया लेकिन अब स्काटलैंड को हराकर दौड़ में शामिल है। उसके ग्रुप में बांग्लादेश और अफगानिस्तान भी है और लग रहा है कि वह इनको हरा देगा। लेकिन एक उलटफेर होने पर आईसीसी के समीकरण बदल सकते हैं। जैसे कि आयरलैंड ने वेस्टइंडीज को हरा दिया और ऐसे में यदि वह बाकी तीन मजबूत टीमों से हार जाता और दूसरी तरफ आयरिश टीम दो अन्य कमजोर टीमों को हरा देती तो मामला गड़बड़ा जाता। इसके अलावा कई पूर्व क्रिकेटरों ने इस प्रारूप की आलोचना भी की। दर्शक भी केवल बड़े मैचों में दिलचस्पी ले रहे हैं। इसलिए अब आईसीसी को लगने लगा है कि यदि वह इस प्रारूप के साथ आगे बढ़ी तो टूर्नामेंट की लोकप्रियता पर असर पड़ सकता है।
         ईसीसी अब इंग्लैंड में 2019 में होने वाले विश्व कप के प्रारूप में बदलाव पर गंभीरता से विचार कर रही है। क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिये उसने इस टूर्नामेंट में एसोसिएट देशों को भी पर्याप्त जगह दी लेकिन ऐसे अधिकतर मुकाबले में एकतरफा रहे। इसलिए अब यह तय लग रहा है कि अगले विश्व कप में यह प्रारूप नहीं अपनाया जाएगा। आईसीसी फिर से पुरार्ने ढर्रे पर लौटने की सोच रही है। इससे पहले 1992 में जो प्रारूप था उसे दोबारा अपनाया जा सकता है। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में ही 1992 में खेले गये विश्व कप में नौ टीमों ने हिस्सा लिया। कोई ग्रुप नहीं था और सभी टीमें राउंड रोबिन आधार पर एक दूसरे से भिड़ीं और फिर जिन चार टीमों के सबसे अधिक अंक थे वे सेमीफाइनल में पहुंच गयी। भारत और आस्ट्रेलिया इन चार टीमों में शामिल नहीं थे।
            आईसीसी अब टूर्नामेंट में अधिक टीमों को शामिल करना चाहती थी और इसलिए 1996 में यह प्रारूप बदल दिया गया। छह छह टीमों के दो ग्रुप बनाये गये और प्रत्येक ग्रुप से चोटी पर रहने वाली चार टीमें क्वार्टर फाइनल में पहुंची। इंग्लैंड में 1999 में हुए विश्व कप में इसमें सीधे क्वार्टर फाइनल के बजाय सुपर सिक्स जोड़ दिया गया जिससे मैचों की संख्या बढ़ी। चार साल बाद 2003 में भी यही प्रारूप अपनाया गया लेकिन इस बार टीमों की संख्या बढ़कर 14 हो गयी थी यानि सात . सात टीमों के दो ग्रुप। यहां पर बड़ी टीमों के जल्द बाहर होने की संभावना बन गयी। मेजबान दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, पाकिस्तान, वेस्टइंडीज सुपर सिक्स में नहीं पहुंच पायी। इसके अलावा अंक आगे ले जाने की व्यवस्था के कारण भी यह प्रारूप जमा नहीं। इस प्रारूप को 2003 में ही विदाई दे दी गयी।  प्रारूप फिर बदल दिया गया। इस बार टीमों की संख्या भी 16 हो गयी और इसलिए चार चार टीमों के चार प्रारूप बन गये लेकिन भारत और पाकिस्तान के पहले दौर में बाहर होने से सारे योजनाएं धरी की धरी रह गयीं। तब प्रत्येक ग्रुप से दो टीमें सुपर आठ में पहुंची थी।
              अब फिर से प्रारूप बदलने जा रहा है। आईसीसी को पता चल गया है कि अधिक टीमों को शामिल करने से विश्व कप की लोकप्रियता या रोमांच नहीं बढ़ेगा। इसके उलट इन दोनों के स्तर में कमी आ रही है। इसलिए अब वह 2019 में दस टीमों को राउंड रोबिन आधार पर एक दूसरे से भिड़ाने की तैयारी कर रही है। सभी प्रारूपों पर गौर करने पर लगता है कि यह सही भी है। किसी टीम को किसी तरह का गिला शिकवा भी नहीं रहेगा। हां बारिश के कारण यदि कोई मैच रद्द होता है तो तब कुछ समीकरण गड़बड़ा सकते हैं लेकिन कुछ ऐसी चीजें होती हैं जिन पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता है और फिलहाल क्रिकेट में बारिश इन चीजों में शामिल है। जहां तक कमजोर टीमों का सवाल है तो उनके लिये टी20 विश्व चैंपियनशिप सबसे बढ़िया विकल्प है। क्रिकेट इस प्रारूप के जरिये ही दुनिया के तमाम देशों में फैलाया जा सकता है।
                                        
      

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