Saturday, March 21, 2015

वनडे में अब दोहरे नहीं तिहरे शतक का इंतजार

                                                                                 धर्मेन्द्र पंत 
   कदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पहला दोहरा शतक लगने में 39 साल से भी अधिक समय तक इंतजार करना पड़ा और अब आलम यह है कि एक महीने के अंदर दो दोहरे शतक लग गये। पिछले चार दशकों में 'पाजामा क्रिकेट' का रंग रूप, स्वरूप सब बदल गया है। इसमें विकेट गिरते हैं लेकिन रन ज्यादा बरसते हैं। आईसीसी खुश है और अब एसीबी (अब क्रिकेट आस्ट्रेलिया) भी इसे पाजामा क्रिकेट नहीं कहता है। बहरहाल यह अलग विषय है। हम तो वनडे में बड़ी व्यक्तिगत पारियों और शतकों की बात कर रहे थे। 
     पांच जनवरी 1971 को इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के बीच पहला एकदिवसीय मैच खेला गया था। इस मैच में इंग्लैंड के बायें हाथ के बल्लेबाज जान एल्ड्रिच ने 82 रन बनाये और इस तरह से वनडे में पहला बड़ा स्कोर का रिकार्ड उनके नाम पर दर्ज हो गया। यह रिकार्ड पूरे डेढ़ साल बना रहा क्योंकि इसके बाद अगला वनडे 24 अगस्त 1972 को खेला गया था जिसमें इंग्लैंड के ही डेनिस एमिस ने इस प्रारूप का पहला शतक जड़ा था। उन्होंने 103 रन बनाये। एक साल बाद रिकार्ड बायें हाथ के एक अन्य बल्लेबाज राय फ्रेडरिक्स के नाम पर दर्ज हो गया। उन्होंने वेस्टइंडीज की तरफ से इंग्लैंड के खिलाफ ओवल में 105 रन बनाये। इंग्लैंड के डेविड लायड ने इसे अगले साल यानि अगस्त 1974 में नाबाद 116 रन बनाये जबकि 1975 में खेले गये पहले विश्व कप में न्यूजीलैंड के ग्लेन टर्नर ने नाबाद 171 रन तक पहुंचा दिया। 
        पहली बार किसी बल्लेबाज ने वनडे में 150 रन के स्कोर को पार किया था। तब यह माना जा रहा था कि इस रिकार्ड तक पहुंचना मुश्किल होगा, क्योंकि मैच भी कम खेले जाते थे और शतक भी कम लगते थे। एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के जन्म के बाद से लेकर पहले दशक यानि सत्तर के दशक में नौ साल में केवल 24 शतक लगे। इनमें से सर्वाधिक दस शतक इंग्लैंड के बल्लेबाजों ने लगाये। भारत का तो कोई बल्लेबाज तिहरे अंक में भी नहीं पहुंच पाया था लेकिन अगला विश्व रिकार्ड एक भारतीय ने ही बनाया था। वह 18 जून 1983 का दिन था जबकि कपिल देव ने टन ब्रिज वेल्स में जिम्बाब्वे के खिलाफ विश्व कप मैच में नाबाद 175 रन की ऐतिहासिक पारी खेली थी। 
    अब मैच ज्यादा खेले जाने लगे थे और शतक भी बनने लगे थे। अस्सी के दशक में वनडे में कुल 134 सैकड़े बनाये गये। वेस्टइंडीज ने सर्वाधिक 39 जबकि आस्ट्रेलिया और पाकिस्तान ने 25.25 शतक लगाये थे। भारत की तरफ से भी 17 शतक लगे। सत्तर के दशक में जहां 150 से अधिक का केवल एक स्कोर बना वहीं अस्सी के दशक में ऐसे स्कोर की संख्या पांच पहुंच गयी। वेस्टइंडीज के विव रिचडर्स ने  एक साल में ही कपिल का रिकार्ड अपने नाम कर दिया था। उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ मैनचेस्टर में नाबाद 189 रन बनाये लेकिन दोहरे शतक तक नहीं पहुंच पाये। रिचर्ड्स ने इसके अलावा 181 रन की एक अन्य पारी खेली थी। उनके देश के डेसमंड हेन्स और इंग्लैंड के डेविड गावर भी 150 रन की संख्या को छूने में सफल रहे थे। 

बनने लगे बड़े स्कोर, टूटने लगे रिकार्ड 

       रिचर्ड्स ​के नाम पर 13 साल तक रिकार्ड बना रहा और आखिर में नब्बे के दशक में पाकिस्तान के सईद अनवर ने इसे तोड़ दिया। अनवर 21 मई 1997 को भारत के खिलाफ चेन्नई में जब दोहरे शतक से एक शाट दूर थे तब सचिन तेंदुलकर ने उन्हें आउट कर दिया। शायद भगवान ने भी पहला दोहरा शतक बनाने का रिकार्ड क्रिकेट के भगवान के नाम पर लिखा था। बहरहाल नब्बे के दशक में वनडे में कुल 315 शतक लगे जिनमें 15 स्कोर 150 रन या इससे अधिक के बने थे। दक्षिण अफ्रीका के गैरी कर्स्टन भी विश्व कप 1996 के एक मैच में नाबाद 188 रन तक पहुंचे थे। इस दशक में तेंदुलकर ने सर्वाधिक 24 जबकि अनवर ने 17 शतक लगाये थे। 
    अनवर का 194 रन के रिकार्ड तक पहुंचना बल्लेबाजों के लिये चुनौती बना रहा। नयी सदी के पहले दशक में यह रिकार्ड नहीं टूटा। इस दौरान 465 वनडे मैचों में 565 शतक लगे। 150 रन या इससे अधिक के 35 स्कोर बने। भारत ने 88, आस्ट्रेलिया ने 82, श्रीलंका ने 64, पाकिस्तान ने 62 और दक्षिण अफ्रीका की तरफ से 60 शतक लगे। रिकी पोंटिंग 23, सनथ जयसूर्या और तेंदुलकर 21.21 तथा क्रिस गेल और हर्शल गिब्स 19.19 शतक लगाने में सफल रहे लेकिन अनवर के रिकार्ड तक जिम्बाब्वे के चार्ल्स कावेंट्री ही पहुंच पाये। कावेंट्री ने असल में बांग्लादेश के खिलाफ बुलावायो में 16 अगस्त 2009 में नाबाद 194 रन बनाकर इसकी बराबरी की थी। अनवर ने राहत की सांस ली लेकिन नयी सदी के दूसरे दशक के शुरू में ही यानि 24 फरवरी 2010 को तेंदुलकर दोहरे शतक तक पहुंचने वाले बल्लेबाज बन गये। 
         तेंदुलकर ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ ग्वालियर में नाबाद 200 रन बनाये थे लेकिन यह तय था कि उनका यह रिकार्ड ज्यादा समय तक नहीं टिक पाएगा क्योंकि ​एकदिवसीय मैचों के नियम बल्लेबाजों के अनुकूल बना दिये गये। बाउंड्रीज अपेक्षाकृत छोटी बन गयी और बल्ले में भी इतना दमखम भर दिया गया कि छक्के जड़ना पहले की तरह मुश्किल नहीं रहा। तिस पर क्रिकेट का सबसे छोटा बेटा टी20 भी पैदा हो गया। वह अपने बड़ों को सिखाने लगा कि तेजी से रन कैसे बनाये जाते हैं। टेस्ट मैचों में परिणाम ज्यादा आने लगे तो वनडे को इससे सबसे ज्यादा फायदा हुआ। यहां रन बरसने लगे। अब आप ही देख लीजिए की पिछले लगभग पांच वर्षों में 289 मैचों में 385 शतक बन चुके हैं। इनमें 200 या इससे अधिक छह स्कोर शामिल हैं। मतलब पांच साल में छह दोहरे शतक। जिस 150 रन को कभी बल्लेबाज लक्ष्य लेकर चलते थे उस पांच वर्ष में 22 बल्लेबाजों ने 31 बार हासिल कर लिया है। भारत ने पिछले पांच साल में 60, दक्षिण अफ्रीका ने 58, श्रीलंका की तरफ से 55 शतक लग चुके हैं। विराट कोहली 21, हाशिम अमला 19, तिलकरत्ने दिलशान 17, एबी डिविलियर्स 16 और कुमार संगकारा ने 15 शतक लगाये हैं।
     इसलिए अब कहा जा रहा है कि वनडे में तिहरा शतक लगाना भी संभव है यह रोहित शर्मा भी जानते है कि उनका 264 रन का रिकार्ड किसी भी दिन टूट सकता है। रोहित से पहले वीरेंद्र सहवाग ने आठ दिसंबर 2011 को इंदौर में 219 रन बनाकर तेंदुलकर का रिकार्ड तोड़ा था। रोहित ने आस्ट्रेलिया के खिलाफ दो नवंबर 2013 को बेंगलूर में 209 रन बनाये लेकिन आखिर में वह इसके एक साल बाद 13 नवंबर 2014 को कोलकाता में सहवाग का रिकार्ड तोड़ने में सफल रहे। मार्टिन गुप्टिल ने नाबाद 237 रन बना दिये हैं। यह तय है कि कल कोई उनसे आगे निकलकर रोहित को पीछे छोड़ने की कोशिश करेगा और फिर 300 के लक्ष्य तक पहुंचना चाहेगा। जिस तरह से रन बरस रहे हैं उससे लगता है कि वनडे में तिहरा शतक भी इसी दशक में बन सकता है। 

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