Sunday, August 16, 2015

विराट के नाम खुला खत

प्रिय विराट,
    मुझे आपसे सहानुभूति है। इसलिए नहीं कि गाले टेस्ट मैच में टीम जीत की स्थिति में होने के बावजूद हार गयी। इसके कुछ और कारण हैं। पहली वजह आपसे ही जुड़ी हुई है। आपको अभी टेस्ट टीम का कप्तान बने हुए कुछ महीने हुए हैं लेकिन आपने स्पष्ट संकेत दे दिये कि आप टीम पर से 'धौनी प्रभाव' समाप्त करने के लिये आमादा हो। परि​वर्तन प्रकृति का नियम है लेकिन वह शनै: शनै: होता है। कोई भी कप्तान अपने मनपसंद की टीम गठित करके अपने हिसाब से उसका संचालन करना चाहता है। इसमें मुझे आपत्ति नहीं लेकिन दूध को भी दही बनने में थोड़ा समय लगता है भाई। जिस टीम को महेंद्र सिंह धोनी ने पिछले छह वर्षों से एक ढांचे में ढाल रखा था उसे आप एकदम से दूसरे ढांचे में फिट करना चाहते हो। इसके नकारात्मक परिणाम आपके सामने हैं। आप यह क्यों भूल गये कि टेस्ट मैच जीतने के लिये यदि 20 विकेट लेने होते हैं तो 20 विकेट बचाने भी होते हैं। धीरे . धीरे और परिस्थितियों का आकलन करके प्रयोग करते तो बेहतर होता भाई।  एक कप्तान अपने पहले चार टेस्ट मैचों में चार शतक लगाता है और उनमें से किसी में भी टीम को जीत नहीं मिलती है तो उस कप्तान से सहानुभूति होना स्वाभाविक है। मुझे आपसे सहानुभूति है विराट।
    मुझे आपसे इसलिए भी सहानुभूति है क्योंकि आपके साथ रवि शास्त्री जुड़े हुए हैं। धौनी की ​'विराट छत्रछाया' में उनकी कुछ खास नहीं चली लेकिन अब लगता है कि विराट के साये में उन्हें अपनी बात रखने का मौका मिल गया है। अगर अंतिम एकादश के चयन में उनकी दखलदांजी है, जैसा कि उनकी तल्ख टिप्पणियों से लगा, तो फिर यही आभास होता है भाई कि उन्हें टीम की नहीं मुंबई की चिंता है। वह मुंबई का कर्ज उतारना चाहते है। आपको शायद याद नहीं हो लेकिन एक समय भारतीय क्रिकेट पर मुंबई लॉबी हावी थी। टीम में मुंबई के खिलाड़ियों की भरमार हुआ करती थी। सुनील गावस्कर टीम लेकर न्यूजीलैंड गये हुए थे। सौराष्ट्र के दिलीप दोषी उन्हें पसंद नहीं थे। वह अनफिट हो गये और गावस्कर को मौका मिल गया। उन्होंने मुंबई के अपने एक साथी को एसओएस भेजकर बुलवा दिया। यह साथी कोई और नहीं शास्त्री थे जिन्होंने तब तक केवल सात प्रथमश्रेणी मैच खेले थे। अब इतिहास दोहराया जा रहा है। मुंबई के एक खिलाड़ी (रोहित शर्मा) के लिये सौराष्ट्र के एक खिलाड़ी (चेतेश्वर पुजारा) की बलि दी जा रही है। अफसोस कि इसमें आप खुलकर शास्त्री का साथ दे रहे हैं। यह भूल रहे हैं कि पुजारा वास्तव में टेस्ट विशेषज्ञ हैं और लंबी अवधि के प्रारूप में रोहित से बेहतर बल्लेबाज हैं। यहां पर यदि मैं यह साबित करने के लिये आंकड़ों की बिसात बिछांऊ तो अच्छा नहीं लगेगा। शास्त्री को समझाओ भाई कि अब मुंबई का पहले जैसा दबदबा नहीं रहा और अंजिक्य रहाणे खेल तो रहा है। कभी संजय बांगड़ और भरत अरूण को भी अलग में ले जाकर उनकी राय पूछ लिया करो।
    सहानुभूति का एक कारण यह भी है कि धौनी के संन्यास लेने के बाद आपकी कप्तानी की राह तो आसान हो गयी लेकिन टीम ने एक मंझा हुआ विकेटकीपर बल्लेबाज खो दिया। आपके पास रिद्धिमान साहा है जो इसलिए टीम में है क्योंकि बीसीसीआई में बंगाल लॉबी ऐसा चाहती है। कुछ और भी विकेटकीपर हैं जो बेहतर विकल्प हो सकते हैं। गाले में विकेट के पीछे साहा के प्रदर्शन से तो आप भी संतुष्ट नहीं होंगे लेकिन आपने उन पर छठे नंबर के बल्लेबाज के रूप में कैसे विश्वास कर लिया। एडम गिलक्रिस्ट के नाम और उनके बल्लेबाजी कौशल से तो आप परिचित होंगे। उनकी मौजूदगी के बावजूद आस्ट्रेलिया छह बल्लेबाजों के साथ उतरता था। आस्ट्रेलिया की उस टीम से सीख लेकर अपना गेंदबाजी आक्रमण मजबूत करो। साहा जैसे विकेटकीपरों के रहते आपकी पांच बल्लेबाजों की थ्योरी कारगर साबित होगी, मुझे संदेह है। 
     और हां कप्तानी में अभी नये हो, चाटुकारों से बचना। कोई भी जो आपको माराडोना या पेले बता रहा है उससे दूर ही रहना है। सफलता हासिल करनी हो तो हिन्दी के मुहावरे 'निंदक नियरे राखिये' पर भी गौर कर लेना। ​
     श्रीलंका के खिलाफ बाकी दो टेस्ट मैचों में सकारात्मक परिणाम के लिये शुभकामनाएं।
                                                           एक क्रिकेट प्रेमी
    

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