Wednesday, February 4, 2015

आलराउंडरों की भूमिका होगी अहम

        भारत 1983 में पहली बार विश्व चैंपियन बना और इसका काफी श्रेय टीम के आलराउंडरों को जाता है। कप्तान कपिल देव तब दुनिया के सर्वश्रेष्ठ आलराउंडरों की सूची में शामिल थे। मोहिंदर अमरनाथ ने अपने हरफनमौला कौशल का लाजवाब प्रदर्शन किया तथा सेमीफाइनल और फाइनल में आलराउंड खेल के दम पर मैन आफ द मैच बने। मदनलाल ने गेंदबाजी में तो अच्छा प्रदर्शन किया ही, वह अच्छे बल्लेबाज भी थी। रवि शास्त्री की आलराउंड क्षमता पर किसी को शक नहीं होना चाहिए।  रोजर बिन्नी अच्छे स्विंग गेंदबाज थे लेकिन जरूरत पड़ने पर रन बना सकते थे। टीम में कीर्ति आजाद भी थे जो मुख्य रूप से बल्लेबाज के रूप में लिये गये थे लेकिन उनकी आफ स्पिन भी कुछ अवसरों पर कारगर साबित हुई। इसके 28 साल बाद 2011 में भारत को​ फिर से विश्व कप दिलाने में आलराउंडरों की भूमिका अहम रही। युवराज सिंह ने गेंद और बल्ले से गजब का प्रदर्शन किया तथा मैन आफ द सीरीज बने। उन्होंने 90.50 की औसत 362 रन बनाये और 25.13 की औसत से 15 विकेट लिये थे। युवराज ने तब भारत को आलराउंडर की कमी नहीं खलने दी थी। अब विश्व कप 2015 में यह भूमिका निभाने के लिये रविंद्र जडेजा और स्टुअर्ट बिन्नी को टीम में चुना गया है। विश्व कप में भारतीय खिलाड़ियों से अवगत कराने की अपनी कड़ी में आज हम इन दोनों से आपका परिचय कराते हैं। 
  
रविंद्र जडेजा : फिर बनना होगा रॉकस्टार 
      
आस्ट्रेलिया के महान स्पिनर शेन वार्न ने आईपीएल में राजस्थान रायल्स के लिये कुछ युवा खिलाड़ियों की फौज तैयार की थी। इनमें रविंद्र जडेजा भी शामिल थे जिन्हें अपनी काबिलियत पर इतना भरोसा था कि वार्न ने उन्हें 'रॉकस्टार' नाम दे दिया। अपनी योग्यता पर विश्वास का ही नतीजा था कि उन्हें बीच में आईपीएल से बाहर भी होना पड़ा लेकिन वे एक अपरिपक्व खिलाड़ी का शुरूआती दौर था जो जिंदगी में भी कुछ विषम पलों से गुजर चुका था। इस बीच जडेजा को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण का मौका भी मिल गया। जडेजा 2009 से भारतीय वनडे टीम का अहम हिस्सा रहे, लेकिन विश्व कप 2011 में युवराज सिंह की उपस्थिति के कारण उन्हें टीम में जगह नहीं मिल पायी थी।
       श्रीलंका के खिलाफ अपने दूसरे वनडे में ही नाबाद 60 रन बनाने वाले जडेजा भले ही निरंतर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाये लेकिन अपनी हरफनमौला काबिलियत के कारण वह टीम के लिये उपयोगी बने रहे। यदि वह बल्ले से अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाये तो उन्होंने गेंद से कमाल दिखाया। यही वजह थी कि चेन्नई सुपरकिंग्स ने जडेजा पर 20 लाख डालर खर्च कर दिये थे। रणजी ट्राफी में जडेजा ने लंबी पारियां खेलने की अपनी क्षमता का परिचय तीन तिहरे शतक लगाकर दिया। जडेजा को दिसंबर 2012 में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण का भी मौका मिल गया। बायें हाथ के स्पिनर के रूप में उन्होंने आस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू श्रृंखला में बेहतरीन प्रदर्शन किया और 17.45 की औसत से 24 विकेट लिये। जडेजा ने इस दौरान स्पिन गेंदबाजी खेने में सक्षम माने जाने वाले माइकल क्लार्क को पांच बार पवेलियन की राह दिखायी। भारत ने यह सीरीज 4—0 से जीती थी।
      इस बीच जडेजा ने वनडे में अपनी गेंदबाजी का कमाल दिखाया और आईसीसी एकदिवसीय रैंकिंग में नंबर एक गेंदबाज बने। वह अनिल कुंबले के बाद दूसरे भारतीय थे जो वनडे गेंदबाजी रैंकिंग में शीर्ष पर पहुंचे थे। जडेजा यदि फार्म में हों तो अपनी आलराउंड क्षमता के कारण किसी भी टीम के लिये उपयोगी साबित हो सकते हैं। यही वजह है कि भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने जडेजा के चोटिल होने के बावजूद उन्हें विश्व कप टीम में लेने का दांव खेला। अब जडेजा फिट हैं लेकिन विश्व कप से पहले उन्हें मैच फिट भी होना होगा। उनकी मौजूदगी में भारतीय बल्लेबाजी को मजबूती मिलेगी। उन्हें नंबर सात या आठ पर बल्लेबाजी के लिये उतरना है। इस नंबर के बल्लेबाज को तेजी से रन बनाने पड़ सकते हैं। उन्हें ऐसे में अच्छा फिनिशर बनना होगा। वह लंबे हिट लगाने में सक्षम हैं तथा आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बड़े मैदानों में भी बड़े शाट खेलने में उन्हें दिक्कत नहीं आनी चाहिए। गेंदबाजी में उनकी 'फ्लाइट' बल्लेबाजों को परेशानी में डाल सकती है।
     इंग्लैंड में चैंपियन्स ट्राफी में उनकी गेंदबाजी काफी कारगर साबित हुई थी। जडेजा ने तब पांच मैचों में 12 विकेट हासिल किये थे। वेस्टइंडीज के खिलाफ ओवल में उन्होंने 36 रन देकर पांच विकेट लिये थे जो वनडे में उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी है। सौराष्ट्र के इस 26 वर्षीय क्रिकेटर ने अब तक 111 वनडे मैच खेले हैं जिनमें उन्होंने 33.92 की औसत और दस अर्धशतकों की मदद से 1696 रन बनाये हैं और 32.76 की औसत से 134 विकेट लिये हैं।

स्टुअर्ट बिन्नी : आलोचकों को देना होगा जवाब 
    
विश्व कप के लिये जो 15 सदस्यीय टीम चुनी गयी उसमें सबसे ज्यादा चौंकाने वाला नाम स्टुअर्ट बिन्नी का था। बिन्नी के पिता और पूर्व भारतीय आलराउंडर रोजर बिन्नी चयन समिति के सदस्य ​हैं और यही मान लिया गया कि बेटे के चयन में पिता की भूमिका अहम रही। रोजर ने हालांकि साफ किया था कि जब स्टुअर्ट का नाम चर्चा में आया तो वह बैठक से उठकर बाहर आ गये थे। बिन्नी के चयन पर बहस लाजिमी थी क्योंकि कर्नाटक के इस आलराउंडर ने तब तक केवल छह वनडे मैच खेले थे और जिनमें विशेषकर महेंद्र सिंह धौनी ने कप्तान रहते हुए उनका सही उपयोग नहीं किया था। एक उदाहरण पिछले साल हैमिल्टन में खेले गये वनडे मैच का ले सकते हैं। इस मैच में बिन्नी को बल्लेबाजी का मौका नहीं मिला। धौनी ने उनके बजाय आर अश्विन को पहले बल्लेबाजी के लिये भेज दिया था। इसके बाद बिन्नी से केवल एक ओवर की गेंदबाजी करवायी गयी जिसमें उन्होंने आठ रन दिये थे। इसके उलट अंबाती रायुडु को तीन ओवर दिये गये थे। हाल में त्रिकोणीय श्रृंखला में पर्थ में इंग्लैंड के खिलाफ मैच में बिन्नी भारत के सबसे सफल गेंदबाज रहे लेकिन धौनी ने उनसे ओवर का कोटा पूरा नहीं करवाया। क्या धौनी अब भी उन पर विश्वास नहीं करते। यदि इसका जवाब हां में है तो फिर विश्व कप से पहले यह अच्छे संकेत नहीं हैं। उम्मीद है कि ऐसा नहीं होगा। सुनील गावस्कर के शब्दों में, ''लगता है कि धौनी में आइडियाज की कमी हो गयी है। ''
     गावस्कर पहले पूर्व क्रिकेटर थे जिन्होंने बिन्नी के चयन पर कतई हैरानी नहीं जतायी थी। उनका मानना था कि कर्नाटक के इस आलराउंडर की सीम गेंदबाजी आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की पिचों पर कारगर साबित होगी। इसके अलावा वह निचले क्रम में जरूरत पड़ने पर रन भी बना सकते हैं। त्रिकोणीय श्रृंखला के कुछ मैचों में उनकी यह बात सही साबित भी हुई। इंग्लैंड के खिलााफ ब्रिस्बेन में जब चोटी के बल्लेबाज नहीं चल पाये थे तब बिन्नी ने सर्वाधिक 44 रन बनाये और बाद में भारत की तरफ से एकमात्र विकेट लिया। इसी टीम के खिलाफ पर्थ में उन्होंने गेंदबाजी का आगाज करते हुए आठ ओवर में 33 रन देकर तीन विकेट लिये थे। बिन्नी की खासियत यह है कि वह 'विकेट टु विकेट' गेंदबाजी करते हैं और बल्लेबाज को खुलकर खेलने के लिये जगह नहीं देते हैं। बिन्नी ने खुद को सीमित ओवरों के विशेषज्ञ के तौर पर स्थापित किया है लेकिन बीच में  इंडियन क्रिकेट लीग के जुड़ने के कारण उनका करियर डांवाडोल हो गया था। उन्हें पिछले साल इंग्लैंड में तीन टेस्ट खेलने का मौका भी मिला लेकिन गेंदबाज के रूप में उनका भरपूर उपयोग नहीं किया गया जिसके कारण अब भी बिन्नी को अपने पहले टेस्ट विकेट की दरकार है। 
       बिन्नी 30 वर्ष के हैं लेकिन उन्हें अब तक केवल नौ वनडे खेलने का मौका मिला है। इनमें उन्होंने 18.20 की औसत से 91 रन बनाये हैं और 14.15 की औसत से 13 विकेट लिये हैं। उनका इकोनोमी रेट 4.52 है। जाहिर है कि बल्लेबाजों को उनकी सटीक गेंदबाजी पर रन बनाने में परेशानी होती है। बिन्नी का वनडे में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन चार रन देकर छह विकेट है जो उन्होंने पिछले साल बांग्लादेश के खिलाफ ढाका में किया था। बिन्नी भी पहली बार विश्व कप में भाग लेंगे। उनके पिता रोजर बिन्नी ने 1983 विश्व कप में 17 विकेट लेकर भारत की खिताबी जीत में अहम भूमिका निभायी थी। उम्मीद है कि स्टुअर्ट अपने पिता के इस प्रदर्शन से प्रेरणा लेंगे। वह भारत की तरफ से विश्व कप में खेलने वाली पिता पुत्र की पहली जोड़ी भी होगी।
                                                             धर्मेन्द्र मोहन पंत 

1 comment:

  1. S.S. DOGRA.... भारतीय क्रिकेट टीम आज विशाल स्कोर की बात छोडिये एक सम्मानजनक स्कोर तक बनाने में कामयाब नहीं हो पा रही है एक दिवसीय मैचों में सफलता पाने के लिए दमदार बल्लेबाज होने चाहिए १९८३ वर्ल्ड कप पर भी ध्यान से देखे तो यशपाल शर्मा, के श्रीकांत, दिलीप वेंगसरकर, मोहिंदर अमरनाथ, कपिलदेव की ऐतिहासिक बल्लेबाजी तथा रोजर बिन्नी, मदनलाल, मोहिंदर अमरनाथ, कपिल तथा रवि शास्त्री , बलविंदर सिंह संधू की बेहतरीन किफायती गेंदबाजी की बदौलत क्रिकेट की बादशाहत मिली थी. हालाँकि इंग्लैंड की तत्कालीन स्थितियों में कोई बड़े स्कोर नहीं बने थे लेकिन कपिल देव की कप्तानी अमरनाथ की उपकप्तानी में वेस्ट इंडीज को वेस्ट इंडीज में मात देने से टीम इंडिया आत्मविश्वास सेभरी हुईथी. २०११ मेंभी भारतीय क्रिकेट उस समय सबसेबेहतरीन टीम थी जिसमें धोनी केनेत्रत्व में सचिन दादा एंड पार्टी ने जमकर भारतीय बेटिंग विकेट काभरपूर लाभ लेते हुए जाहिर खान -युवराज एंड पार्टी की उम्दा बोलिंग प्रदर्शन से पुन: वर्ल्डकप पर कब्ज़ा करलिया. इसमें साउथ अफ़्रीकी कोच कर्स्टन का अहम् रोल था. लेकिन इस बार भारतीय टीम का मनोबल कमजोर है और आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलेंड की उछालभरी पिचों पर अच्छा पर्दर्शन करने की क्षमता तथा उत्साह दिखाई नहीं दे रहा है लगता इस बात भारत के ये शेर सेमी तक भी नहीं पहुँच पाएंगे. यह कटु सत्य है

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