Thursday, February 5, 2015

गेंदबाजी .. भारतीय टीम का कमजोर पक्ष

  पिछले कुछ वर्षों से भारत का मजबूत पक्ष यदि उसकी बल्लेबाजी रही है तो गेंदबाजी उसका कमजोर पहलू रहा है और विश्व कप से पहले भी टीम इस विभाग को लेकर चिंतित है। आस्ट्रेलिया के हाल के दौरे में गेंदबाजों ने निराश किया। सुनील गावस्कर से लेकर एस वेंकटराघवन, वेंकटेश प्रसाद, जवागल श्रीनाथ सभी का मानना है कि भारत विश्व कप के अपने खिताब का बचाव कर सकता है लेकिन इसके लिये जरूरी है कि उसके गेंदबाज अच्छा प्रदर्शन करें। हम अब तक शीर्ष और मध्यक्रम के बल्लेबाजों और आलराउंडरों की बात कर चुके हैं। अब उन छह खिलाड़ियों से भी आपको रू ब रू करा दें जिन्हें विशुद्ध गेंदबाज के रूप में टीम में चुना गया है। 
     भारतीय तेज गेंदबाजी विभाग में इशांत शर्मा जैसा अनुभवी, भुवनेश्वर कुमार जैसा सटीक,  मोहम्मद शमी और उमेश यादव जैसे उपयोगी गेंदबाज शामिल हैं लेकिन इन सबके बावजूद भारतीय आक्रमण को कमजोर माना जा रहा है। इसका कारण यही है कि ये चारों गेंदबाज निरंतर एक जैसा प्रदर्शन करने में नाकाम रहे हैं। इसके अलावा इनमें से कुछ को समय समय पर फिटनेस की समस्या से भी जूझना पड़ता है। चलिये हम आपको इन चार तेज गेंदबाजों से परिचित कराते हैं जो आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की अनुकूल परिस्थितियों में यदि सफल रहते हैं तो फिर उम्मीद की जा सकती है कि भारत खिताब बचा लेगा। आस्ट्रेलिया के बड़े मैदानों में स्पिनरों की भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता है और ऐसे में चतुराई भरी गेंदबाजी करने में माहिर रविचंद्रन अश्विन, रविंद्र जडेजा और युवा अक्षर पटेल की भूमिका अहम हो जाती है। जडेजा की चर्चा आलराउंडरों के रूप में हो चुकी है। यूं तो अश्विन और पटेल भी रन बनाने में माहिर है लेकिन उन्हें टीम में आलराउंडर के रूप में नहीं चुना गया है। 

इशांत शर्मा : लंबे कद का तूफान


पको भारत के 2008 के आस्ट्रेलिया दौरे का पर्थ टेस्ट मैच याद होगा। सिडनी टेस्ट मैच में उठे विवाद के कारण दोनों टीमें बेहद तनावपूर्ण माहौल में इस मैच में खेल रही थी। रिकी पोंटिंग क्रीज पर थे और इशांत शर्मा उन्हें परेशान कर रहे थे लेकिन उन्हें विकेट नहीं मिल रही थी। तब कप्तान अनिल कुंबले ने उनकी जगह किसी दूसरे गेंदबाज को गेंद सौंपने का फैसला किया लेकिन तभी वीरेंद्र सहवाग ने हस्तक्षेप किया और इशांत को एक और ओवर देने का आग्रह किया। इसके बाद क्या हुआ वह इतिहास बन गया। इशांत ने इस ओवर में पोंटिंग को आउट किया और आखिर में यह मैच का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। भारत ने मैच जीत लिया। यूं तो इशांत ने इससे आठ महीने पहले ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण कर चुके थे लेकिन उन्हें असली पहचान पर्थ टेस्ट मैच के प्रदर्शन से ही मिली। इसके बाद तो स्टीव वॉ ने भी उनकी तारीफ में कसीदे कस दिये थे।
     इशांत को इसका फायदा आईपीएल में मिला जब कोलकाता नाइटराइडर्स ने उन पर मोटी रकम खर्च की। लेकिन इसके बाद इशांत के प्रदर्शन में गिरावट आने लगी। जिस तेज गेंदबाज को जवागल श्रीनाथ की जगह लेने का सही दावेदार माना जा रहा था वह एकदम से साधारण लगने लगा। इसका सबसे बड़ा कारण आईपीएल और सीमित ओवरों के मैचों में रनों पर अंकुश लगाने के लिये आजमाये जाने वाले तरीके थे। आस्ट्रेलिया में इशांत ने कुछ अवसरों पर 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से भी गेंदबाजी की थी लेकिन उनकी तेजी एकदम से गिरने लगी और इसका उनके प्रदर्शन पर भी प्रतिकूल असर पड़ा। वह यहां तक कि विश्व कप 2011 की टीम में भी जगह नहीं बना पाये। इस बीच उन्हें चोटों से भी जूझना पड़ा। यह इशांत का सौभाग्य था कि इस बीच भारत को कोई ऐसा तेज गेंदबाज नहीं मिला जो कि लगातार अच्छा प्रदर्शन कर पाये। इस वजह से इशांत को जब तक मौका मिलता रहा। टेस्ट मैचों में वह अक्सर विकेट लेने के लिये तरसते रहे। इसका उनके गेंदबाजी औसत पर प्रति​कूल असर पड़ा। इशांत ने अब तक 61 टेस्ट मैच खेले हैं जिनमें उन्होंने 37.30 की औसत से 187 विकेट लिये हैं।
     इशांत अभी भारतीय क्रिकेट टीम में सबसे अनुभवी गेंदबाज हैं और इसलिए उनकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। जवागल श्रीनाथ ने 2003 और जहीर खान ने 2011 के विश्व कप में जिस तरह अपने साथी गेंदबाजों के लिये 'मेंटर' की भूमिका निभायी थी वहीं काम इशांत को आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में करना होगा। महेंद्र सिंह धौनी संभवत: उनका उपयोग तीसरे गेंदबाज के रूप में करें और फिर मोहम्मद शमी के साथ डेथ ओवरों की जिम्मेदारी उन्हें सौंपे। इसके लिये इशांत को मानसिक रूप से तैयार रहना होगा। छह फुट चार इंच लंबे इशांत अपने 'हाई आर्म एक्शन' का फायदा उठाते रहे हैं। वह तेजी से गेंद को बाहर की तरफ निकालने में भी माहिर हैं और ऐसे में आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की परिस्थितियों में उपयोगी साबित हो सकते हैं। उन्हें चोटों से भी बचना होगा। दो सितंबर 1988 को दिल्ली में जन्में इशांत ने विश्व कप से पहले तक 76 वनडे खेले जिनमें उन्होंने 106 विकेट लिये हैं। उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 34 रन देकर चार विकेट है।


सटीक गेंदबाजी और स्विंग का मास्टर भुवनेश्वर कुमार

    

त्तर प्रदेश के मेरठ जिले से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में खास पहचान बनाने वाले भुवनेश्वर कुमार की गेंदबाजी में भी वही गुण नजर आते हैं जो उनके शहर के एक अन्य गेंदबाज प्रवीण कुमार की गेंदबाजी में दिखते थे। अंतर इतना है कि भुवनेश्वर अपनी गेंदबाजी और व्यवहार दोनों को सीमाओं में रखना जानते हैं। उनकी लाइन और लेंथ शानदार है और दोनों तरफ स्विंग कराने की उनकी कला से वह किसी भी टीम के लिये उपयोगी बन जाते हैं।
     भुवनेश्वर ने 2007.08 से उत्तर प्रदेश की तरफ से नयी गेंद संभालने का जिम्मा अच्छी तरह संभाला। उन्होंने धीरे धीरे निचले क्रम में खुद को उपयोगी बल्लेबाज भी साबित कर दिया। उन्होंने अक्तूबर 2012 में हैदराबाद में दलीप ट्राफी सेमीफाइनल में मध्य क्षेत्र की तरफ से उत्तर क्षेत्र के खिलाफ 128 रन बनाकर अपनी बल्लेबाजी क्षमता का अच्छा परिचय दिया था। इसके तुरंत बाद दिसंबर 2012 में पाकिस्तानी टीम के खिलाफ चेन्नई में उन्हें अपना पहला एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेलने का मौका मिल गया। भुवनेश्वर ने अपनी पहली गेंद पर मोहम्मद हफीज को बोल्ड किया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
      यह 24 वर्षीय गेंदबाज असल में नयी गेंद का बहुत अच्छा इस्तेमाल करता है। इसलिए कई बाद कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने उनसे शुरू में लगातार दस ओवर करवाये और भुवनेश्वर ने भी कप्तान की उम्मीदों पर खरा उतरकर विरोधी टीम पर दबाव बनाये रखा। जब से वनडे में दो नयी गेंदों का उपयोग किया जाने लगता तब से भुवनेश्वर इस प्रारूप के लिये अधिक उपयोगी साबित हो गये हैं। भुवनेश्वर का अपनी गेंदों पर नियंत्रण रहता है लेकिन अब भी उन्हें डेथ ओवरों की अपनी गेंदबाजी पर मेहनत करने की जरूरत है। वह पुरानी गेंद का उतनी अच्छी तरह से उपयोग नहीं कर पाते हैं जैसे कि एक स्विंग गेंदबाज से उम्मीद की जाती है।
      भुवनेश्वर ने अब तक 44 वनडे मैच खेले हैं जिसमें उन्होंने अभी तक भारत के लिये 12 टेस्ट मैच भी खेल चुके हैं जिसमें उन्होंने 45 विकेट लिये हैं लेकिन उनका इकोनोमी रेट 4.62 है। वह वनडे में अपनी बल्लेबाजी कौशल का खास प्रदर्शन नहीं कर पाये हैं। इसके विपरीत भुवनेश्वर ने जो 12 टेस्ट मैच खेले हैं उनमें तीन अर्धशतक जमाये हैं। उन्होंने इन 12 मैचों में 29 विकेट लिये हैं।


मोहम्मद शमी.. तेजी बरकरार रखने में माहिर


बंगाल की तरफ से जब 2010.11 सत्र में तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी ने अपने प्रथम श्रेणी करियर की शुरूआत की तो उन्हें लोग शमी अहमद के नाम से जानते थे। उन्होंने जल्द ही अपनी गेंदबाजी से प्रभावित करना शुरू कर दिया और इसके दो साल बाद उन्हें अपना पहला एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने का मौका मिल गया। बंगाल के जूनागढ़ में नौ मार्च 1990 को जन्में शमी नयी और पुरानी दोनों तरह की गेंदोें को विकेट के दोनों तरफ मूव कराने में पारंगत हैं और इसलिए उन्हें विशेषकर डेथ ओवरों के लिये उपयोगी माने जाने लगा। शमी ने भी कई अवसरों पर डेथ ओवरों में शानदार गेंदबाजी करके खुद को टीम के लिये उपयोगी गेंदबाजी साबित किया। ऐसे समय में जब भारतीय गेंदबाज डेथ ओवरों में ढेरों रन लुटा रहे थे, शमी ने अपने अच्छे प्रदर्शन से टीम में जगह पक्की कर दी। इसके अलावा वह लगातार 140 किमी या इससे अधिक गति से गेंदबाजी करने में भी माहिर हैं। वह जब पूरी लय से गेंदबाजी करते हैं तो उनकी सटीकता देखने लायक होती है। ऐसे में वह न सिर्फ बल्लेबाजों पर अंकुश लगाये रखते हैं बल्कि उन पर दबाव भी बनाते हैं।
     शमी ने अपना पहला एकदिवसीय मैच जनवरी 2013 में पाकिस्तान के खिलाफ नयी दिल्ली में खेला था और किफायती गेंदबाजी करने के अपने कौशल का अच्छा नमूना पेश करके चार ओवर मेडन किये थे। उन्होंने 2012.13 रणजी सत्र में पांच मैचों में 28 विकेट चटकाये। दो मैचों में तो वह दस.दस विकेट लेने में भी सफल रहे जिसमें एक हैट्रिक भी शामिल है। इस प्रदर्शन के दम पर वह वेस्टइंडीज के खिलाफ अपने घरेलू मैदान ईडन गार्डन्स पर टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण करने में सफल रहे। अपने इस पहले टेस्ट मैच में ही उन्होंने 118 रन देकर नौ विकेट लिये जो किसी भारतीय तेज गेंदबाज का पदार्पण पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। इसके बाद उन्हें दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड के खिलाफ खेलने का मौका भी मिला। न्यूजीलैंड दौरे में उन्होंने पांच वनडे में 11 विकेट लिये। वह भारतीय टेस्ट और वनडे टीम के नियमित सदस्य बन गये।

     इस बीच शमी ने अपनी बल्लेबाजी पर भी ध्यान केंद्रित किया क्योंकि वह जानते थे कि विशेषकर टीम में जगह पक्की करने के लिये उन्हें बल्लेबाजी में सुधार करना होगा। इंग्लैंड के खिलाफ नाटिंघम टेस्ट मैच में उन्होंने नाबाद 51 रन की पारी खेलकर अपने बल्लेबाजी कौशल का पहला नमूना पेश किया था। आस्ट्रेलिया के खिलाफ एडिलेड टेस्ट मैच में भी उन्होंने उपयोगी 34 रन बनाये। उन्होंने टीम प्रबंधन के दिमाग में यह पक्का कर दिया है कि वह जरूरत पड़ने पर लप्पेबाजी कर सकते हैं। गेंदबाजी में हालांकि पिछले कुछ समय से वह अपनी गेंदों पर लगातार नियंत्रण रखने में नाकाम रहे हैं और इसलिए कुछ मैचों में बेहद महंगे साबित हुए। शमी को विश्व कप में सुनिश्चित करना होगा कि वह अपनी गेंदों पर अच्छा नियंत्रण रखें। बंगाल ने इस तेज गेंदबाज ने अब तक 40 वनडे मैचों में 70 विकेट लिये हैं लेकिन उन्होंने 5.67 रन प्रति ओवर की दर से रन लुटाये हैं।


तेजी और आक्रामकता बनाये रखनी होगी उमेश यादव को


क ऐसा शख्स जिसके पिता कोयले की खान में काम करते हों और जिसने अपनी शुरूआती क्रिकेट टेनिस गेंद से खेली हो वह एक दिन भारत की तरफ से टेस्ट क्रिकेट में नयी गेंद संभालेगा। यह वास्तव में भारत में ही संभव है। इस शख्स का नाम उमेश यादव है। अपनी किशोरावस्था में अधिकतर समय टेनिस गेंद से खेलने वाले उमेश को जब चमड़े की गेंद मिली तो वह बेहद उत्साहित हुए। वह 16 किमी की लंबी दौड़ लगाकर अभ्यास स्थल तक पहुंचते और फिर तेज गेंद फेंकने का अभ्यास करते। मेहनत रंग लायी और उन्हें विदर्भ की तरफ से रणजी ट्राफी में खेलने का मौका मिल गया। जो उमेश अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिये सेना में भर्ती होना चाहता था उसका करियर दूसरी तरफ ढल गया। वह आईपीएल के भी अहम हिस्सा बन गये।
     प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण के दो साल बाद ही उमेश को भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका भी मिल गया। भारत ने 2010 में जिम्बाब्वे दौरे के लिये अपने कई सीनियर खिलाड़ियों को विश्राम दे दिया था। उमेश को इस टीम में लिया गया और उन्हें बुलावायो में अपना पहला वनडे खेलने का भी मौका मिल गया। इसके डेढ़ साल बाद उन्होंने दिल्ली में वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया। वह भारत की तरफ से खेलने वाले विदर्भ के पहले क्रिकेटर बन गये थे। उमेश हालांकि लगातार एक जैसा प्रदर्शन नहीं कर पाने और चोटों के कारण टीम से अंदर बाहर होते रहे। उन्होंने अब तक 12 टेस्ट मैचों में 43 विकेट लिये हैं। उन्हें आस्ट्रेलिया में खेलने का अच्छा अनुभव है जहां उन्होंने सात टेस्ट मैच खेले हैं। इन मैचों में उन्होंने 25 विकेट लिये हैं लेकिन उनका औसत 43.96 है जिसे खराब कहा जाएगा।
     उमेश यादव की खासियत यह है कि वह काफी तेजी से गेंद करते हैं और अभी भारत की तरफ से सबसे तेज रफ्तार से गेंद करने वाले गेंदबाज हैं। एक बार उन्होंने 154 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से भी गेंद की थी। वह लगातार 140 किमी से अधिक तेजी से गेंदबाजी करने में सक्षम हैं। इसके अलावा उनकी शार्ट पिच गेंदें काफी कारगर साबित होती हैं। 25 अक्तूबर 1987 को जन्में उमेश 'विकेट टु विकेट' गेंदबाजी करते हैं और ऐसे में कभी वह बेहद महंगे साबित हो जाते हैं। आस्ट्रेलिया के खिलाफ सिडनी टेस्ट मैच में तीन ओवर में 45 रन लुटाने के कारण उनकी काफी किरकिरी हुई थी लेकिन उम्मीद है कि उमेश अब इसको भुलाकर विश्व कप में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश करेंगे। वह पहली बार विश्व कप में भाग ले रहे हैं। उन्होंने वनडे में अब तक 40 मैच खेले हैं जिसमें 36.44 की औसत से 49 विकेट लिये हैं। उनका इकोनोमी रेट 5.90 है जिसे कि प्रभावशाली नहीं कहा जा सकता है।


कैरम बॉल का नया कलाकार ..अश्विन


चपन में जब रविचंद्रन अश्विन ने क्रिकेट का रूख किया तो उन्होंने सबसे पहले बल्ला थामा था। उनकी इच्छा भी चोटी का बल्लेबाज बनने की थी लेकिन धीरे धीरे वह फिरकी गेंदबाज बन गये और अपनी आफ स्पिन से बल्लेबाजों को परेशान करने लगे लेकिन वह बल्लेबाजी भी नहीं भूले हैं। अगर किसी खिलाड़ी के नाम पर 24 टेस्ट मैच के करियर में दो शतक और चार अर्धशतक दर्ज हों तो आप यही कहेंगे कि वह बल्लेबाजी करने में माहिर है। सुनील गावस्कर जैसे क्रिकेट का गहरा ज्ञान रखने वाले विश्लेषक ने तो अश्विन को विश्व कप में पारी का आगाज करने के लिये भेजने की सलाह दे डाली है। स्वाभाविक है कि वह भी तमिलनाडु के इस 28 वर्षीय क्रिकेटर की बल्लेबाजी का​बिलियत से प्रभावित हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि अश्विन को आलराउंडर क्यों न माना जाए। लेकिन अश्विन की मुख्य भूमिका आफ स्पिनर की है और उन्हें जरूरत पड़ने पर ही बल्लेबाजी का जिम्मा सौंपा जाएगा। यदि अश्विन का अंतिम एकादश में चयन होगा तो वह आलराउंडर के तौर पर नहीं बल्कि स्पिनर के रूप में होगा। इसलिए उनको स्पिनर की श्रेणी में रखना ही बेहतर रहेगा
     अश्विन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह हर दिन कुछ नया सीखना चाहते हैं। इसलिए आफ स्पिनर होते हुए भी उन्होंने कैरम बॉल का अभ्यास किया और धीरे धीरे उस पर पूरी तरह से नियंत्रण हासिल कर लिया। इसलिए कह सकते हैं कि अश्विन विविधतापूर्ण स्पिनर हैं तथा आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की परिस्थितियों में उनकी गेंदबाजी कारगर साबित हो सकती है। महेंद्र सिंह धौनी ने चेन्नई सुपरकिंग्स की तरफ से एक गेंदबाज के रूप में अश्विन का बहुत अच्छा उपयोग किया। इसका अश्विन को भी फायदा मिला और वह देश दुनिया के क्रिकेट प्रेमियों ही नहीं राष्ट्रीय चयनकर्ताओं का ध्यान भी अपनी तरफ खींचने में सफल रहे। उन्होंने जून 2010 में अपना पहला वनडे खेला और फिर डेढ़ साल बाद टेस्ट क्रिकेट में भी पदार्पण कर दिया। वेस्टइंडीज के खिलाफ अपने पदार्पण टेस्ट मैच में ही अश्विन ने दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान की अनुकूल पिच पर नौ विकेट चटकाये। अपनी इस पहली टेस्ट श्रृंखला में उन्होंने 22 विकेट लिये और शतक भी जड़ने में सफल रहे थे। उन्होंने अब तक 24 टेस्ट मैचों में 1000 से अधिक रन बनाये हैं और 119 विकेट लिये हैं।
    एकदिवसीय मैचों में अश्विन को भले ही बल्लेबाजी के अधिक मौके नहीं मिले हों लेकिन गेंदबाजी में उन्होंने पूरा कमाल दिखाया है। उन्होंने अब तक 88 वनडे मैच खेले हैं जिनमें उनके नाम पर 120 विकेट दर्ज हैं। उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 24 रन देकर तीन विकेट है। अश्विन विश्व कप 2011 की विजेता टीम के सदस्य भी थे जिसमें उन्हें केवल दो मैच खेलने का मौका मिला था। उन्होंने वेस्टइंडीज और आस्ट्रेलिया के खिलाफ दो दो विकेट लिये थे। बल्लेबाजी में उन्हें केवल एक बार मौका जिसमें वह दस रन बनाकर नाबाद रहे थे। इस बार विश्व कप में अश्विन आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की पिचों पर अपना प्रदर्शन सुधारने की भी कोशिश करेंगे। आस्ट्रेलियाई सरजमीं पर उन्होंने अब तक आठ मैचों में आठ विकेट जबकि न्यूजीलैंड की धरती पर पांच मैचों में केवल एक विकेट लिया है। यही वजह है कि अंतिम एकादश में जगह के लिये उन्हें दूसरे स्पिनर अक्षर पटेल से कड़ी चुनौती मिल सकती है।


रनों पर अंकुश लगाने में दक्ष अक्षर पटेल


क्षर पटेल भारत के उनके खिलाड़ियों में शामिल हैं जिन्हें आप आईपीएल की देन कह सकते हैं। बायें हाथ के इस स्पिनर ने गुजरात की तरफ से रणजी ट्राफी में अच्छा प्रदर्शन किया। उन्होंने एसीसी एमर्जिंग टीम कप में बढ़िया खेल दिखाया लेकिन चयनकर्ताओं पर उनकी नजर तब गयी जब इस 21 वर्षीय क्रिकेटर ने आईपीएल 2014 में किंग्स इलेवन पंजाब की तरफ से 16 विकेट लिये और जरूरत पड़ने पर लप्पेबाजी करके उपयोगी रन जुटाये। इसके तुरंत बाद उन्हें बांग्लादेश दौरे के लिये वनडे टीम में चुन लिया गया। चयनकर्ताओं ने यह मानकर अश्विन के साथ पटेल को दूसरे स्पिनर के रूप में विश्व कप टीम में रखा कि यदि ये दोनों अपनी गेंदबाजी के अलावा निचले क्रम में 25 . 30 रन बना लेते हैं तो टीम को इसका काफी लाभ मिलेगा।
     अक्षर को असल में बैकअप स्पिनर के रूप में चुना गया क्योंकि वह भी रविंद्र जडेजा की तरह बायें हाथ के स्पिनर हैं। टीम के चयन के समय जडेजा की फिटनेस को लेकर संदेह था और अक्षर ने जिस तरह से मौकों का अच्छा फायदा उठाया उससे चयनकर्ताओं को उनके नाम पर सहमति जताने के लिये ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी पड़ी थी। अक्षर की बड़ी खासियत है कि वह परिस्थितियां कैसी भी हों अपनी सटीक गेंदबाजी से रनों पर अंकुश लगाने में माहिर हैं। वह बल्लेबाज को बांधे रखते हैं और इस तरह से एक छोर से दबाव बनाकर दूसरे छोर के गेंदबाज को पर्याप्त मौके प्रदान करते हैं। अक्षर ने अब तक जो 13 वनडे खेले हैं उनमें उन्होंने 16 विकेट लिये हैं लेकिन उनका इकोनोमी रेट 4.41 है। हाल में त्रिकोणीय श्रृंखला के जिन तीन मैचों में उन्हें गेंदबाजी का मौका मिला उसमें उन्होंने केवल दो विकेट लिये लेकिन किसी भी मैच में अक्षर ने ज्यादा रन नहीं लुटाये। अपनी किफायती गेंदबाजी के कारण वह अंतिम एकादश में जगह बनाने के दावेदार बन जाते हैं।

                                                धर्मेन्द्र मोहन पंत


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