Friday, March 27, 2015

क्रिकेट में हार पर दुख और खुशी

                                  धर्मेन्द्र पंत 

    भारतीय क्रिकेट टीम हार गयी। मुझे दुख नहीं हुआ। यह दुख बहुत पहले काफूर हो चुका था। मुझे याद है ​1987 के विश्व कप सेमीफाइनल की। भारत का सामना इंग्लैंड से था और लक्ष्य का पीछा करते हुए भारतीय विकेट धड़ाधड़ गिर रहे थे। मैं तब रेडियो पर कमेंट्री सुन रहा था। कमेंटेटर के मुंह से जैसे ही निकला, ''ये रवि शास्त्री का हवा में लहराता शाट और कैच आउट ...।'' रेडियो की सलामती के लिये उसे पिताजी को सौंप दिया था। शायद यह आखिरी क्षण था जबकि मुझे भारतीय टीम की हार पर दुख हुआ। इसके बाद एक पत्रकार के रूप में खेलों से जुड़ा और यह जीवन का हिस्सा बन गया। जल्द ही समझ में आ गया कि अगर दो टीमें आपस में खेलेंगी तो जीत एक को ही मिलेगी। एक टीम को हारना है तभी दूसरी जीतेगी। हारने वाली टीम भारत की भी हो सकती है। यही खेल है। यही जिंदगी है। भारत की जीत के साथ हार की रिपोर्ट भी कई बार तैयार की लेकिन दोनों के साथ पूरा न्याय किया। 
      भारत की हार पर मैंने लोगों की प्रतिक्रियाएं भी देखी। हार पर आक्रामक प्रतिक्रिया देने वालों को मैंने कभी क्रिकेट प्रेमी नहीं माना। किसी खेल का प्रेमी हुड़दंगी नहीं होता। वे निराश हो सकते हैं, वे दुखी हो सकते हैं, वे किसी खिलाड़ी को कोस सकते हैं लेकिन उसे गाली नहीं दे सकते। उसके पुतले नहीं जला सकते। उसके घर में पथराव नहीं कर सकते। ऐसे लोगों पर मुझे हमेशा दया आयी। मैंने उनमें एक अपरिपक्व इंसान देखा। सिडनी में आस्ट्रेलिया के हाथों भारत की हार के बाद विराट कोहली की महिला मित्र अनुष्का शर्मा को कोसने वाले व्यक्ति भी इसी श्रेणी में आते हैं। ये सभी लोग दया के पात्र हैं। वे उस भीड़ का हिस्सा हैं जिनका न तो क्रिकेट से लेना देना है और ना ही देश से। उन्हें तो बस बात का बतंगड़ बनाना है और मुझे अफसोस इस बात का है कि मीडिया से जुड़े कुछ लोग भी इसमें शामिल हैं। प्रिंट मीडिया फिर भी संयम दिखाता है लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया का व्यवहार कई अवसरों पर बेहद असंयमित हो जाता है। यह ठीक उसी तरह से है जैसे कि कोई अफसर चंद रूपयों की खातिर अपना ईमान बेचे दे। तथाकथित टीआरपी के लिये पत्रकारिता को मत बेचिये प्लीज। 
         यह तो रही दुख, निराशा और अतिरंजित प्रतिक्रिया करने वाले लोगों की बात। एक और वर्ग है। यह वह वर्ग है जो भारत की हार पर खुश होता है और इसमें वे लोग शामिल हैं जिनको लगता है कि क्रिकेट देश के अन्य खेलों को बर्बाद कर रहा है क्योंकि हाकी या फुटबाल में हार पर विस्फोटक प्रतिक्रियाएं देखने या सुनने को नहीं मिलती। क्या वास्तव में इस सबके लिये क्रिकेट दोषी है। मैं ऐसा नहीं मानता। इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका में तो क्रिकेट के साथ साथ फुटबाल, रग्बी, हाकी आदि टीम गेम भी समान रूप से आगे बढ़े हैं। विश्व कप की दूसरी फाइनलिस्ट न्यूजीलैंड में रग्बी हावी है। हालैंड हाकी का दीवाना है ​लेकिन फुटबाल में उसकी टीम अव्वल दर्जे की है और वह क्रिकेट में भी दखल देता है। जर्मनी के सामने फुटबाल हो या हाकी दुनिया की कोई टीम टिक नहीं सकती। ऐसे कई देश हैं जिन्होंने कई टीम खेलों में अपनी महारत दिखायी और वे समान रूप से आगे बढ़े। 
     फिर भारत में ऐसा क्यों नहीं हो पाया। इसके कई कारण हैं। इनमें पहला कारण तो भारतीय खेल संघों की व्यवस्था और लालफीताशाही है। खिलाड़ियों के लिये सुविधाओं का अभाव है। लेकिन सबस अहम कारण टीमों का विश्व स्तर पर अच्छे परिणाम नहीं देना है। आखिर जब हाकी टीम ने एशियाड में स्वर्ण पदक जीता था तो फिर देश के हर खेल प्रेमी ने खिलाड़ियों को सर आंखों पर बिठाया था। अभिनव बिंद्रा का ओलंपिक स्वर्ण आज भी हर भारतीय की जुबान है और मेरीकाम या साइना नेहवाल से पूछिये कि ओलंपिक में पदक की कीमत क्या होती हैं। उन्होंने प​रिणाम दिये तो आज भारतीय खेलों में उनका दर्जा महारानी जैसा है। सानिया मिर्जा एक समय कमाई और लोकप्रियता दोनों में तब के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटरों को बराबर की टक्कर देती थी। कई नाम हैं लिएंडर पेस, महेश भूपति, सुशील कुमार, विजेंदर सिंह, दीपिका कुमारी, जीव मिल्खा सिंह, बाईचुंग भूटिया, सरदार सिंह जिनको मीडिया ने हमेशा तवज्जो दी। मुझे नहीं लगता कि इनमें से कोई भी ऐसा खिलाड़ी होगा जो देश में दूसरे खेलों की दुर्दशा के लिये क्रिकेट को दोषी देगा। आखिर क्रिकेट हमें ज्यादा मनोरंजन देता है तो फिर उसे क्यों कोसा जाए। मुझे तो लगता है कि यह खुश होने का कारण है कि चलो एक खेल तो ऐसा है जिसमें हम विश्व में जीवंत उपस्थिति दर्ज कराते हैं। 
    इसलिए क्रिकेट हो या हाकी हर खेल का मजा लीजिए। खेल मनोरंजन के लिये होते हैं। उनका आनंद उठाइये। गुस्सा और घृणा को थूक दीजिए। 

2 comments:

  1. आपको याद होगा, राजेश और आपसे मैने पहले ही कहा था क़ि भारतीय टीम सेमीफाइनल से आगे नहीं बढ़ पाएगी. आप भी जानते हैं क़ि टीम इंडिया डेढ़ महीने पहले ही एक्सपोज़ हो गई थी. उसका लगातार मैच जीतकर अंतिम चार मे पहुँचना बड़ी बात है . जहाँ तक मीडिया की बात है तो इलैक्ट्रानिक मीडिया नंगा हो चुका है. प्रिंट मे आज भी दम है .रही बात विश्व स्तरीय खेल होने की तो क्रिकेट आज भी दस देशों से आगे नहीं बढ़ पाया है .बल्कि मैं तो कहूँगा क़ि यह खेल भारत के कारण जिंदा है .यह भी सच है क़ि वेस्टइंडीज,ज़िम्बाबे,इंग्लैंड और पाकिस्तान मे इस खेल की उल्टी गिनती चल रही है .

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  2. हां हमारी इस पर बात हुई थी। आपका आकलन सही था। सेमीफाइनल में भारत की कमजोरियां खुलकर सामने आयी। भारत कैसा खेला, क्रिकेट की स्थिति कैसी है यह अलग सवाल है। मैं चैनलों और लोगों की प्रतिक्रियाओं से क्षुब्ध था। रही बात क्रिकेट की उल्टी गिनती शुरू होने की तो यहां पर मैं आपसे सहमत नहीं हूं। कुछ देशों में यह उतार चढ़ाव के दौर से गुजर रहा है लेकिन कुछ नये देश भी क्रिकेट से जुड़ रहे हैं। पाकिस्तान में आज भी क्रिकेट का दबदबा है बस आतंकवाद उस पर हावी है। वेस्टइंडीज को दुनिया क्रिकेट के कारण जानती है और मुझे नहीं लगता कि वहां यह खेल खत्म होगा। इंग्लैंड में आज भी यह फुटबाल और रग्बी को बराबर की टक्कर दे रहा है। इस साल एशेज में देख लीजिए। इंग्लैंड में क्रिकेट की लोकप्रियता फिर चरम पर होगी।

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