Monday, March 30, 2015

आस्ट्रेलिया, साइना और श्रीकांत : बेदर्द बनकर ​बने विजेता

                                        धर्मेन्द्र पंत 

  स्ट्रेलिया पांचवीं बार चैंपियन बन गया। नेपोलियन ने कहा था, ''इतिहास विजेता का होता है।'' इसलिए माफ करना न्यूजीलैंड। सब आपकी सराहना कर रहे हैं। वास्तव में आपने अच्छा खेल दिखाया लेकिन विजेता वही होता है जो अंतिम किला भी जीते। आस्ट्रेलिया विजेता  है और जब विश्व कप के विजेताओं का जिक्र किया जाएगा तो उसमें न्यूजीलैंड का नाम नहीं होगा। इसलिए कह सकते हो कि इतिहास बेदर्द होता है लेकिन उसका यही रवैया हमें जीतना सिखाता है। आस्ट्रेलिया ने यह सीख बहुत पहले हासिल कर ली थी, इसलिए वह पांचवी बार विजेता बना है। उसके सामने कोई भी टीम हो उसके लिये वह एक प्रतिद्वंद्वी है। उसके पास अपने प्रतिद्वंद्वियों के लिये रहम जैसा कोई शब्द नहीं है। अगर आपने रहम दिखाना शुरू किया तो फिर विजेता नहीं बन सकते। विजेता बनने की राह में आप खुद को सजा देते हो और दूसरों को भी मजा चखाते हो। आस्ट्रेलिया ने ऐसा किया और वह चैंपियन बन गया।
      न्यूजीलैंड छह बार सेमीफाइनल में नाकाम रहने के बाद पहली बार फाइनल में पहुंचा था और उसके खिलाड़ियों में किसी हद तक संतुष्टि का पुट भर गया था। आस्ट्रेलिया की तो जैसे मुराद पूरी हो गयी थी। उसके खिलाड़ी अपने प्रतिद्वंद्वियों पर चीते की तरह झपट पड़े थे। उसने भारतीयों की इसी कमजोरी का फायदा सेमीफाइनल में उठाया था। विश्व कप से पहले भारत का प्रदर्शन जैसा था उससे कोई नहीं मान रहा था कि वह अंतिम चार में पहुंचेगा। भारत सेमीफाइनल में पहुंचा और उसके युवा खिलाड़ियों को लगा कि उन्होंने बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। यह बल्लेबाजों और गेंदबाजों दोनों में दिखा और फिर क्या हुआ वह सभी जानते हैं। न्यूजीलैंड सेमीफाइनल के मिथक को तोड़ने के लिये बेताब था और उसकी यह दृढ़ इच्छा दक्षिण अफ्रीका को लील गयी जिसके खिलाड़ी पहली बार नाकआउट की बाधा करके चैंपियनों की तरह व्यवहार करने लग गये थे। इसलिए आस्ट्रेलिया से सीख लेने की जरूरत है। सिर्फ क्रिकेटरों ही नहीं बल्कि हर खेल से जुड़े खिलाड़ियों और हर क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति को भी। 

     भारत में इस तरह की सीख कुछ खिलाड़ियों ने हासिल कर ली है या यूं कहें कि उनमें जन्मजात इस तरह के गुण थे। इन खिलाड़ियों में साइना नेहवाल सबसे ऊपर है और इसलिए आज वह दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी है। मुझे साइना और एक अन्य भारतीय किदाम्बी श्रीकांत की इंडिया ओपन सुपर सीरीज बैडमिंटन टूर्नामेंट की जीत आस्ट्रेलिया की जीत से ज्यादा प्रभावित कर गयी। साइना को देखकर हो सकता है कि आपके मन में सवाल उठे कि वह दंभी है लेकिन असल में यह उनका आत्मविश्वास है जो उनकी सफलता का राज भी है। चीन ने अपने खिलाड़ियों में यह दृष्टिकोण भरा और आज देखिये कि ओलंपिक में उसका दबदबा है। चीन को बैडमिंटन का बादशाह कह सकते हो लेकिन उसकी महिला खिलाड़ी पिछले कुछ वर्षों से केवल साइना से खौफ खाती हैं। असल में साइना ने उनको उन्हीं की भाषा में जवाब दिया। साइना कभी संतुष्ट नहीं हो सकती और साइना कभी हार नहीं मानती है,  इसलिए वह विजेता है। श्रीकांत के साथ भी यह सकारात्मक पहलू जुड़ा है कि वह आत्मविश्वास से भरा है, कभी दबाव में नहीं आता और सहज होकर खेलता है। साइना की तरह वह भी प्रतिद्वंद्वी के नाम से नहीं डरता। इसलिए वह लिन डैन को भी हरा देता है। 
       यह भारत के लिये गौरव की बात है कि उसके पास साइना और श्रीकांत जैसे खिलाड़ी हैं जो जानते हैं कि जीत कैसे दर्ज की जाती है। यदि कभी इन दोनों ने संतोष शब्द अपना दोस्त बना दिया तो फिर उनका जीत का जज्बा भी ढीला पड़ जाएगा। खेल का नियम तो यही कहता है। अच्छा खिलाड़ी बनने या सफलता हासिल करने के लिये समर्पण, प्रतिबद्धता, कड़ी मेहनत और जुनून का होना जरूरी है लेकिन यदि ​आप खिलाड़ी है तो आपके पास जज्बा भी होना चाहिए। आपका बेदर्द होना भी जरूरी है। इसलिए मैं हमेशा सौरव गांगुली को भारत का सर्वश्रेष्ठ कप्तान मानता हूं। गांगुली ने भारतीयों को सिखाया था कि आस्ट्रेलिया को उसी की भाषा में कैसे जबाव देना है या इंग्लैंड को कैसे सबक सिखाना है। गांगुली ने यह सीख भारतीय क्रिकेटरों को दी थी लेकिन इससे भारत के अन्य खेलों को भी फायदा हुआ। भारत के दूसरे खेलों ने भी कुछ हद तक सबक लिया। आप देख सकते हो कि गांगुली के कप्तान बनने के बाद भारत ने क्रिकेट ही नहीं कई अन्य खेलों में भी सफलताएं हासिल की थी। साइना और श्रीकांत उसे आगे बढ़ा रहे हैं। भविष्य के खिलाड़ी साइना और श्रीकांत से सबक लेंगे। इसी तरह से देश आगे बढ़ते हैं। इसलिए विजेता बनना है तो विजेताओं का अनुसरण करो। आस्ट्रेलिया से सबक लो, साइना से सीखो और श्रीकांत को समझो। फायदे में रहोगे। 

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