Saturday, April 11, 2015

आज गुगली भी दुखी होगी बेनो

     रिची बेनो नहीं रहे और मुझे बर्नार्ड बोसेनक्वेट की याद आने लगी। बोसेनक्वेट वही शख्स जिन्होंने क्रिकेट को 'गुगली' से अवगत कराया। बोसेनक्वेट ने 'ट्विस्टी ट्वोस्टी' खेलते हुए लेग स्पिनरों को एक नया अस्त्र दे दिया था। बोसेनक्वेट इंग्लैंड के आलराउंडर थे, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि उनके देश में कभी कोई ऐसा गेंदबाज नहीं हुआ जो गुगली में माहिर रहा हो। वह तो आस्ट्रेलिया था जिसके गेंदबाजों ने गुगली को पूरा मान सम्मान दिलाया। बोसेनक्वेट ने आस्ट्रेलिया में मार्च 1903 में सबसे पहली बार विक्टर ट्रम्पर को गुगली की थी। उसी दिन से आस्ट्रेलियाई गुगली के कायल हो गये और फिर उसके गेंदबाजों ने इसे अपना मारक हथियार बना दिया। आस्ट्रेलिया में बोसेनक्वेट के नाम पर गुगली को 'बोसी' भी कहा जाता है। वैसे वे लोग इसे 'रांग उन' के नाम से अधिक जानते हैं। आस्ट्रेलिया के गेंदबाजों की लंबी फेहरिश्त है जो गुगली में माहिर थे। 
गुगली का महारथी रिची बेनो
     हरबर्ट हारडर्न पहले आस्ट्रेलियाई गेंदबाज थे जिन्होंने गुगली को अपनाया। क्लेरी ग्रिमेट ने इसे विशेष पहचान दिलायी तो रिची बेनो ने गुगली को नयी ऊंचाईयों तक पहुंचाया। बेनो ने 63 टेस्ट मैचों में 248 विकेट लिये। उनके बाद शेन वार्न ने आस्ट्रेलिया में यह परंपरा आगे बढ़ायी लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा जिस देश ने क्रिकेट जगत को गुगली के महारथी दिये वहीं आज यह विधा दम तोड़ती नजर आ रही है। वार्न और स्टुअर्ट मैकगिल के बाद कोई भी आस्ट्रेलियाई गेंदबाज ऐसा नहीं है जो गुगली पर अधिकार रखता हो। स्टीवन स्मिथ ने अपने करियर के शुरू में गुगली करने का अच्छा प्रयास किया था लेकिन अब वह विशुद्ध बल्लेबाज बन गये हैं। 
     बेनो, जब इस शख्स का नाम सुनाई देता है तो एक ऐसे कमेंटेटर की छवि जेहन में तैरने लगती है जिसकी आवाज ही उनकी पहचान बन गयी थी। क्रिकेटरों को मैदान छोड़ने के बाद कमेंट्री बाक्स तक पहुंचना बेनो ने ही सिखाया था। बेनो इससे बढ़कर एक बेहतरीन आलराउंडर, लाजवाब कप्तान और गुगली के महारथी थे। अपनी नयी किताब की तैयारियों के समय गुगली पर काफी कुछ जानने समझने की कोशिश की तो मुझे बेनो एक ऐसे लेग स्पिनर नजर आये जिन्हें लगता था कि गुगली करना सबसे आसान काम है। उन्होंने एक बार कहा था, ''गुगली करते समय हाथ पहले आसमान चूमता है और उसके तुरंत बाद जमीन को। '' वैसे बेनो यह भी सलाह देते रहे कि भाई जमकर अभ्यास करो तभी गुगली सीख पाओगे अन्यथा इस गेंद को भूल जाओ। बेनो ने भी घंटों तक अभ्यास करने के बाद गुगली में महारत हासिल की थी। 
     ब जबकि बेनो नहीं रहे तब 'गुगली', 'फ्लिपर' जैसी गेंदें भी मायूस होंगी। सचाई तो यह है कि एक समय जब लेग ब्रेक गेंदबाजी और गुगली पर संकट मंडरा रहा था तब वह बेनो थे जिन्होंने इनमें जान भरी और नयी पहचान दिलायी। उन्हें अब भी दुनिया का सर्वश्रेष्ठ लेगब्रेक गुगली गेंदबाज माना जाता है। क्लेरी ग्रिमेट और बेनो के बीच इंग्लैंड के लिये कुछ मैचों में एरिक होलीज खेले थे। यह वही होलीज थे जिन्होंने डान ब्रैडमैन को उनकी आखिरी टेस्ट पारी में शून्य पर आउट करके उन्हें अपना टेस्ट औसत 100 तक नहीं ले जाने दिया था। होलीज की वह गेंद गुगली थी। ब्रैडमैन बड़ा नाम था और इसलिए गुगली भी चर्चा में आ गयी। बेनो को शायद इस गेंद से प्रेरणा मिली। वह तब प्रथम श्रेणी क्रिकेट में कदम रखने की तैयारी कर चुके थे। बेनो ने गुगली पर मेहनत करनी शुरू कर दी और फिर लगभग डेढ़ दशक तक दुनिया भर के बल्लेबाजों को इस गेंद से चकमा देते रहे। भारत के सुभाष गुप्ते उनके समकालीन थे। भारत में बाद में भगवत चंद्रशेखर और अनिल कुंबले ने गुगली की परंपरा को आगे बढ़ाया। यहां तक कि सचिन तेंदुलकर भी अच्छी गुगली कर लेते थे। अब अमित मिश्रा हैं जो गुगली अच्छी तरह से कर लेते हैं। पाकिस्तान में अब्दुल कादिर थे जिन्हें एक समय गुगली का पर्याय समझा जाता था।
    गुगली इंग्लैंड के बाद सीधे आस्ट्रेलिया नहीं बल्कि दक्षिण अफ्रीका पहुंची थी। बोसेनक्वेट के बाद दक्षिण अफ्रीका के रेगी श्वार्ज ने गुगली की विधा को आगे बढ़ाया था। आज पाकिस्तान में जन्मा एक लेग स्पिनर इमरान ताहिर गुगली को वापस दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट का हिस्सा बना रहा है। असल में विश्व क्रिकेट में कभी एक साथ कई लेगब्रेक गुगली गेंदबाज देखने को नहीं मिले। कई बार लगा कि यह विधा दम तोड़ देगी तभी बेनो जैसा कोई स्पिनर पैदा हो जाता। अब एक बेनो चला गया इस उम्मीद में कि दुनिया में फिर कई और बेनो पैदा होंगे और गुगली तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद जिंदा रहेगी। 

4 comments:

  1. महान क्रिकेटर और बेहतरीन इंसान थे रिची बेनो..आपकी लेखनी को सलाम

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  2. क्या खूब लिखा हँ धर्मी डिअर। मजा आ गया। ज्ञान वर्धन के लिए धन्यबाद।

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